महाराष्ट्र- उद्धव ठाकरे सरकार के सीएम की कुर्सी में नया पेंच फास गया है। दरअसल सीएम उद्धव ठाकरे को छह महीने के भीतर या तो विधान सभा या तो विधान परिषद् का सदस्य्ता बनना अनिवार्य था। ये जो मियाद है वो 28 मई को ख़त्म हो रही है, लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते जो विधान सभा के उप चुनाव थे, विधान परिषद् के उप चुनाव थे कोरोना के चलते उनको चुनाव आयोग ने टालने का फैसला किया था।
इसीलिए महाराष्ट्र के कैबिनेट अलग रास्ता था, जो विधान सभा में दो मनोनियन की पोस्ट होती है वो खली थी उसमे से एक मनोनियन की पोस्ट को राज्यपाल ने संस्तुति कैबिनेट की तरफ से की थी। लेकिन राजपाल ने इस पर अभी तक कोई फैसला नहीं किया है। इस पर मुंबई हाईकोर्ट में चुनौती भी दी थी जिसके बाद मुंबई हाईकोर्ट ने कहा था कि राज्यपाल इस पर फैसला करेंगे।
लेकिन अभी जो जानकारी मिली है बीजेपी सूत्रों के मुताबिक उसमे कहा है ये संवैधानिक मामला है क़ानूनी मामला है। क्यूकि जो जनप्रतिनिधित्व कानून है, उसमे साफ तौर पर कहा गया है की जिस पोस्ट पर उप चुनाव होना है उस पोस्ट की टेन्योर अगर एक साल से कम है तो उस पर उपचुनाव नहीं होगा।
आप को बता दे- दो मनोनियन की पोस्ट खाली हुए है दोनों का कार्यकाल 6 जून को समाप्त हो रहा है, तो जब कार्यकाल ही 6 महीने समाप्त हो रहा है तो जाहिर सी बात है की ये एक साल से काम का समय है। और ऐसे में राज्यपाल चाहें तो ये फैसला कर सकते है के वो कैबिने के फैसले पर कोई कार्यवाही न करे। और इसकी वजह से जो उनकी सदस्यता है वो न मिले और ये एक दिक्कत हो सकती है उद्धव ठाकरे के लिए।
हलाकि एक रास्ता उद्धव ठाकरे के पास ये होगा की वो सदस्य्ता से स्तीफा दे के दुबारा मुख्यमंत्री बने,लेकिन फिर भी ये नैतिक तरीके से सही नहीं माना जाता संवैधानिक तरीके पर सही नहीं मन जाता। तो इस लिए संविधानिक तरीके पर महाराष्ट्र में एक संकट खड़ा हो सकता है।
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इमेज सोर्स गूगल |
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हलाकि एक रास्ता उद्धव ठाकरे के पास ये होगा की वो सदस्य्ता से स्तीफा दे के दुबारा मुख्यमंत्री बने,लेकिन फिर भी ये नैतिक तरीके से सही नहीं माना जाता संवैधानिक तरीके पर सही नहीं मन जाता। तो इस लिए संविधानिक तरीके पर महाराष्ट्र में एक संकट खड़ा हो सकता है।
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