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बल्लभ भाई पटेल की वो बातें जो सरकार भी छुपाती है।

ये कहानी है, लोह पुरुष सरदार बल्लभ भाई पटेल की। जो बहुत कम लोग ही जानते है। 

आजादी से पहले भारत जब अपने वजूद को खोजने की कोशिश कर रहा था, और मुगलो के शासन के बाद लगभह 200 साल ब्रिटश शासन रहा था। देश के बहुत सरे क्रांतिकारिओं के सहादत के बाद 1947 को भारत एक आजाद देश बनने जा रहा था। मोहम्मद अली जिन्ना ने जोधपुर और जैसलमेर के राजा के एक मीटिंग रखी जिसमे उसने पाकिस्तान के साथ मिलने का प्रस्ताव रखा, और एक कोरे कागज़ पर दस्तखत कर के दे दिया। पर राजा ने सोचने का वक्त मांगा तब जिन्ना ने वो कागज़ छीन लिया, अगर पाकिस्तान बनाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना ने वो कागज़ छीन ना लिया होता तो क्या होता।


आज जिसे हम हिंदुस्तान कहते है वो शायद फिर कुछ और ही होता। एक तरफ जहा हम ये सोचते आ रहे है की अंग्रेज़ो ने भारत को एक सूत्र में बांध दिया था लेकिन 565 अलग अलग देशो की बात कहा से आई, असल में जिस ब्रिटिश इण्डिया की हम बात कर रहे है उसमे छोटे बड़े मिला कर 565 रजवाड़े थे। इन रियासतों पर अंग्रेजो का परोक्ष शासन था इन राजाओ की अपनी फ़ौज अपनी पुलिस अपना कानून और कुछ की तो अपनी करेंसी भी थी। इन रजवाड़ो ने ब्रिटेन की गुलामी कबूल कर ली थी जिसे पैरामौन्सी कहते थे,

लेकन अब जब अंग्रेज़ भारत छोड़ के जा रहे थे तब उन्होंने कहा के अब पैरामौन्सी भी खत्म होगी। और सभी रजवाड़े अपना भविष्य चुनने के लिए स्वतंत्र होंगे। अपनी निजी सेना रजाकार सहित मजलिसे इत्तेहादुल मुसमलीन से समर्थन पा कर, उस्मानअली ने अंग्रेजो के चले जाने के बाद 1947 में भारत सरकार के समक्ष समर्पण करने से इंकार कर दिया। अंग्रेजो के साथ विशेष कठबन्धन की दुहाई देते हुए संयुक्त राष्ट्रसंघ में हैदराबाद की पूर्ण सवतंत्रता का मामला उनके सामने रखा। उन्होंने अपनी सत्ता को समर्पण करने की चेतावनी को अस्वीकर कर दिया।

565 रजवाड़ो को एक बनाने की पैसोपेक्ष में उलझे जवाहर लाल नेहरू ने सरदार बल्ल्भ भाई पटेल को पास बुलाया सरदार बलभ भाई पटेल वकील और राजनीतिज्ञ थे। 5 जुलाई 1947 को सरदार पटेल ने रियासतों के प्रति निति को स्पस्ट करते हुए कहा कि रियासतों को तीन विषयो सुरक्षा विदेश तथा संचार व्यवस्था के आधार पर भारतीय संघ में शामिल किया जायेगा।

भारत तत्कालीन गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल ने भारतीय संघ में उन रियासतों का विलय किया जो सवयं में सम्प्रभुता प्राप्त थी। उनका अलग झंडा अलग शासक था सरदार पटेल ने आजादी के ठीक पूर्व ही वीपी मेनन के साथ मिल कर कई देशी राज्यों को भारत में मिलाने के लिए काम शुरू कर दिया था। पटेल और मेनन ने देशी राज्यों को बहुत समझाया के उन्हें सव्यतता देना संभव नहीं होगा। इसके परिणाम स्वरूप तीन रियासते हैदराबाद, कश्मीर, और जूनागढ़ को छोड़ कर शेष सभी रजवाड़ो ने स्वेक्षा से भारत में विलय का प्रस्ताव स्वीकार कर लिया।

15 अगस्त 1947 तक शेष भारतीय रियासते भारत संघ में सम्लित हो चुकी थी। जो भारतीय इतिहास की एक बड़ी उपलब्धि थी। जूनागढ़ के नवाब के खिलाफ जब बहुत विरोध हुआ तो वह भाग के पाकिस्तान चला गया। और इस प्रकार जूनागढ़ नहीं भारत में मिला लिया गया। बल्लभ भाई पटेल के बारे में द मैनचेस्टर गार्डियन अख़बार में लिखा था कि एक ही व्यक्ति विद्रोही और राजनीतिज्ञ के रूप में कभी कभी सफल होता है। गृह मंत्री बनने के बाद रियासतों के विलय की जिम्मेदारी उन्ही को सौंपी गयी थे उन्होंने अपने दायित्व को पूरा करते हुए 600 रियासतों का विलय कराया। राष्ट्र पिता महात्मा गाँधी ने उन्हें लौह पुरुष की उपाधि दी थी।

सरदार ने अग्रेजो को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया था सरकार किसानो से 30%  वसूल करती थी। तभी सरदार ने किसान आंदोलन की स्थापना की और सरकार को 30% लगान से घटा कर 6% लगान तय करना पड़ा।

सरदार बल्लभ भाई पटेल जन्म 31 अक्टूबर 1875 को नाडियाड गुजात में लेवा पट्टीदार जाति के समृद्ध परिवार था। सरदार पटेल के पिता झबेर भाई एक धर्म पारायण व्यक्ति थे। सरदार पटेल ने कहा मै तो साधारण कुटुम्भ का था मेरे पिता मन्दिर में रहते थे और उनका पूरा जीवन मन्दिर में ही बीता, बल्लभ भाई की माता लाड बाई अपने पति की तरह एक धार्मिक महिला थी। बल्ल्भ भाई पांच भाई व् एक बहन थी, पारम्परिक हिन्दू माहौल में पले बड़े।

सोलह बरस की ही आयु में उनका विवाह हो गया, 22 साल की उम्र में उन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की और जिला अधिवक्ता की परीक्षा में उत्तीर्ण हुए, जिससे उन्हें वकालत करने की अनुमति मिली। एक वकील के रूप में सरदार पटेल ने कमजोर मुक़दमे को सटीकता से प्रस्तुत कर के और पुलिस के गवाहों तक अग्रेज न्यायाधीशो को चुनौती दे कर एक विशेष स्थान प्राप्त किया।

सन 1908 में पटेल की पत्नी की मृत्यु हो गई, उस समय उनके एक पुत्र और एक पुत्री थी। इसके बाद उन्होंने विदूर जीवन व्यतीत किया। वकालत के पेशे में तरक्की प्राप्त करने के लिए अगस्त 1910 में लन्दन की यात्रा की वहा उन्होंने मनोयोग से अध्यन किया और अंतिम परीक्षा में उच्च प्रतिष्ठा के साथ उत्तीर्ण हुए।

फरवरी 1913 में भारत लौट कर सरदार पटेल अहमदाबाद में बस गए और तेजी से उन्नति करते हुए अहमदाबाद अधिवक्ता बार में अपराध कानून के अग्रणी बैरिस्टर बन गए। 1917 तक वे भारत की राजनितिक गतिविधियों के प्रति उदासीन रहे।

सन 1917 में मोहन दास करमचन्द गाँधी से प्रभावित होने के बाद सरदार पटेल ने पाया की उनेक जीवन की  दिशा बदल गई है। गाँधी जी के सत्यागृह के साथ तब तक जुड़े रहे जबतक वो अग्रेजो के खिलाफ भारतीयों के संघर्ष में कारगर रहा। लेकिन उन्होंने कभी भी गाँधी जी के नैतिक विश्वासों व आदर्शो का साथ नहीं छोड़ा।

1917-1924 तक सरदार पटेल ने अहमद नगर के पहले भारतीय निगम आयुक्त के रूप में सेवा प्रदान की। और 1924-1928 तक इसके नगर पालिका अध्यक्ष भी रहे 1918 उन्होंने अपनी पहली छाप छोड़ी। जब भारी वर्षा से फसल ख़राब होने के बावजूद बम्बई सर्कार द्वारा पूरा सलाना लगान वसूलने के विरुद्ध गुजरात के एक कैरा जिले के किसानो और कास्तकारो के जान आंदोलन की रूप रेखा बनाई।

1928 में पटेल ने बड़े हुए करों के खिलाफ बारदोली के भूमिपतियों के संघर्ष का सफलता पूर्वक नेतृत्व किया। बारदोली सत्याग्रह के कुशल नेतृत्व के कारण उन्हें सरदार की उपाधि मिली। और उसके बाद देश भर में राष्ट्रवादी नेता के रूप में उनकी छवि बन गयी। उन्हें व्वहारिक निर्णायक और कठोर भी माना जाता था तथा अंग्रेज उन्हें एक खतरनाक सत्रु मानते थे।

दुतीय विश्व युद्ध के दौरान जब जापानी हमले की आशंका हुई, तब सरदार पटेल ने गाँधी जी की अहिंसा की निति को अव्वहारिक बता कर ख़ारिज कर दिया। सत्ता के हस्तांतरण के मुद्दे पर भी उनका गाँधी जी के साथ भी मतभेद था कि उपमहादीप का हिन्दू भारत तथा मुस्लिम पाकिस्तान के रूप में विभाजन अपरिहार्य है। पटेल ने ज़ोर दिया की पाकिस्तान देदेना अब भारत के हित में है।

1945-1946 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष पद के लिए सरदार पटेल ही प्रमुख उम्मीदवार थे। लेकिन महात्मा गाँधी ने एक बार फिर हस्तक्षेप कर के जवाहर लाल नेहरू को अध्यक्ष बनवा दिया। कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में नेहरू को ब्रिटिश वायसरॉय ने अंतरिम सर्कार की गठन के लिए आमन्तिरत किया। इस प्रकार यदि घटनाक्रम सामान्य रहता तो सरदार पटेल भारत के पहले प्रधानमंत्री होते।

1991 में सरदार पटेल को भारत रत्न से सम्मानित किया गया। और अहमदाबाद के हवाई अड्डे का नाम कारण सरदार बल्ल्भ भाई पटेल अंतराष्ट्रीय हवाई अड्डा रखा गया। गुजरात के बल्लब विद्द्या नगर में सरदार पटेल विश्वविद्यालय है,

31 ऑक्टूबर 2013 को सरदार बल्ल्भ भाई पटेल की 137 जयंती के अवसर पर भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात के नर्मदा जिले में सरदार पटेल की स्मारक का शिलान्यास किया इसका नाम स्टैचू ऑफ यूनिटी रखा गया है।

आज जो हमारे भारत की तस्वीर है इसमें सरदार पटेल का बहुत बड़ा योगदान है। देश को अपने पैरो पर खड़ा कर के 15 दिसंबर 1950 को 75 साल की उम्र में सरदार बल्ल्भ भाई पटेल ने अपने प्राण त्याग दिए। लेकिन भारत के प्रति उनका योगदान और उनकी विचार धारा हमेशा हमारे दिलो में जिन्दा रहेगी।

जय हिन्द जय भारत।

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